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ग़ज़ल
यही क्या 'अर्श' था जो पढ़ गया अंदाज़-ए-'मोमिन' मेंथीं तरकीबें अलग सब से वही जादू-बयाँ होगा
अर्श गयावी
ढकोसला
खीर पकाई जतन से और चरख़ा दिया चलाए
खीर पकाई जतन से और चरख़ा दिया चलाएआया कुत्ता खा गया तू बैठी ढोल बजाए
अमीर ख़ुसरौ
ढकोसला
भैंस चढ़ी बिटोरी और लप लप गूलर खाए
भैंस चढ़ी बिटोरी और लप लप गूलर खाएउतर आ मेरे राँड की कही हूपज़ न फट जाए
अमीर ख़ुसरौ
ढकोसला
भैंस चढ़ी बबूल पर और लप लप गूलर खाए
भैंस चढ़ी बबूल पर और लप लप गूलर खाएदुम उठा के देखा तो पूरनमासी के तीन दिन
अमीर ख़ुसरौ
क़िस्सा
क़िस्सा चहार दर्वेश
यह बात सुनकर बेइख़्तियार सौदार ऐसा रोने लगा कि हिचकी बँध गई और बोला कि, “ऐ
अमीर ख़ुसरौ
ना'त-ओ-मनक़बत
क़दम मे'राज में जो 'अर्शे-ए-आ'ज़म की बने ज़ीनतवो गलियाँ हाय जिन गलियों ने इन क़दमों को चूमा है